किसी राष्ट्र का विकास उसके शीशमहलों या रंगीन दीवारों में नहीं बल्कि उसके नागरिकों के नैतिक मूल्यों में गुथा होता हैं। - महात्मा गांधी
कोई एक व्यक्ति किसी विचार या सुधार के लिए अपने प्राण दे सकता है लेकिन उसकी मृत्यु के बाद वह विचार हजारों मनो मैं जाग उठता है । -सुभाष चंद्र बोस
हमें लोहे के स्नायु और फौलादी मांसपेशियां चाहिए हम बहुत रो लिए अब और नहीं रोना है बल्कि मनुष्य की तरह अपने पैरों पर खड़े होना हैl - स्वामी विवेकानंद
मुझे बड़े पैमाने पर उत्पादन चाहिए साथ ही जनता के द्वारा उत्पादन भी चाहिए। - दीनदयाल उपाध्याय
“क्रांति गरीबी और अपराध से निकलती है l” - अरस्तु
“हम जाति की नींव पर कुछ नहीं बना सकते, ना तो इसके दम पर एक राष्ट्र बनाया जा सकता, है ना ही नैतिकता। - डॉक्टर भीमराव अंबेडकर
“वह मुझे मार सकते हैं लेकिन मेरे विचारों को नहीं, वह मेरे शरीर को मार सकते हैं लेकिन मेरी आत्मा को नहीं l” - भगत सिंह